हेलो बच्चों मैं आप लोगों के लिए कहानी लिखने जा रहा हूं। जिसे पढ़कर आपको बेहद पसंद आएगा , और कहानी के माध्यम से आपको बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। अपने जीवन को सफल , कामयाब बनाने में काफी मदद मिलेगी। इस कहानी का मुख्य उद्देश्य हैं, कि बच्चों को शिक्षा प्रदान करना।
ईमानदारी का फल
एक समय की बात है, एक गाँव में रामू नामक व्यक्ति रहता था। वह ईमानदार और बेहद गरीब था, वह गाँव का एकमात्र लकड़हारा था और उसकी जीविका लकड़ियाँ काटकर उन्हें बाजार में बेचने पर निर्भर थी। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी बेहद कठिन थी, क्योंकि वह गरीब था और उसके पास साधन बहुत सीमित थे। लेकिन रामू का एक गुण था जिसके कारण सबके दिलों में खास जगह थी – उसकी ईमानदारी।
रामू हर दिन सुबह जल्दी उठता और अपनी पुरानी कुल्हाड़ी पकड़कर लकड़ी काटने के लिए जंगल जाता था। उसकी कुल्हाड़ी ही उसकी जीविका का साधन थी, और वह इसका ख्याल बहुत अच्छे से रखता था। एक दिन, जब वह नदी के किनारे एक बड़े पेड़ को काटने में लगा हुआ था, तो अचानक उसकी कुल्हाड़ी हाथ से फिसल गई और सीधे नदी में जा गिरी। नदी गहरी थी, और रामू को तैरना नहीं आता था। वह बेहद घबरा गया। उसकी कुल्हाड़ी के बिना वह लकड़ियाँ नहीं काट सकता था, और इसका मतलब था कि वह अपना और अपने परिवार का पेट नहीं पाल सकेगा।वह बहुत दुखी होकर नदी के किनारे बैठ गया और सोचने लगा, “अब क्या होगा? मेरी कुल्हाड़ी के बिना मैं काम कैसे करूँगा? यह कुल्हाड़ी तो मेरी रोजी-रोटी का साधन थी। अब मैं क्या करूँ?” उसकी आँखों से आँसू आने लगी।
तभी अचानक नदी से एक अद्भुत घटना घटी। नदी के जल में हलचल हुई, और देखते ही देखते नदी के देवता प्रकट हुए। उन्होंने रमेश की उदासी और उसकी परेशानी को देखा। देवता ने पूछा, “हे लकड़हारे, तुम क्यों इतने दुखी हो? “रामू ने आदरपूर्वक उन्हें प्रणाम किया और कहा, “महाराज, मेरी कुल्हाड़ी इस नदी में गिर गई है। वह मेरे लिए बहुत कीमती थी, क्योंकि उसी से मैं अपना काम करता था और अपना परिवार पालता था। अब मैं क्या करूँगा?”
देवता उसकी ईमानदारी और निराशा को देखकर प्रसन्न हुए और बोले, “चिंता मत करो, मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूँढकर लाता हूँ।” यह कहकर देवता नदी में गोता लगाकर नीचे गए और थोड़ी देर बाद सोने की एक चमकदार कुल्हाड़ी लेकर बाहर आए। उन्होंने रमेश से कहा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
रामू ने एक नजर उस सोने की कुल्हाड़ी पर डाली। वह जानता था कि यह कुल्हाड़ी उसकी नहीं है। उसने तुरंत जवाब दिया, “नहीं महाराज, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”
देवता ने उसकी ईमानदारी पर आश्चर्य किया, लेकिन उन्होंने फिर से गोता लगाया और इस बार चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आए। उन्होंने फिर से रामू से पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
रामू ने फिर से वही उत्तर दिया, “नहीं महाराज, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”
अब देवता ने आखिरी बार गोता लगाया और लोहे की पुरानी कुल्हाड़ी लेकर बाहर आए। यह वही कुल्हाड़ी थी जो रामू की थी। उन्होंने उसे दिखाते हुए कहा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
रामू की आँखों में खुशी और राहत की चमक थी। उसने तुरंत उत्तर दिया, “हाँ महाराज, यही मेरी कुल्हाड़ी है।”
देवता उसकी ईमानदारी से अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले, “हे ईमानदार व्यक्ति, तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी के कारण मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूँ। यह लोहे की कुल्हाड़ी तो तुम्हारी है ही, इसके साथ मैं तुम्हें सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी भी उपहार स्वरूप देता हूँ।” रामू ने विनम्रता से देवता को धन्यवाद दिया और तीनों कुल्हाड़ियाँ लेकर खुशी-खुशी घर लौट आया।
गाँव में जब लोगों ने रामू की यह कहानी सुनी, तो सभी उसके ईमानदार चरित्र की सराहना करने लगे। रामू की इस घटना से उसे न केवल अधिक सम्मान मिला, बल्कि उसकी गरीबी भी दूर हो गई। वह अब अपने परिवार का अच्छे से पालन-पोषण कर सकता था। सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ बेचकर उसने अच्छा धन कमा लिया और उसका जीवन आरामदायक हो गया।
लेकिन इस कहानी का अंत यहीं नहीं हुआ। जब गाँव के अन्य लकड़हारे और लोग रामू की कहानी सुनते ही, उनमें से कुछ लोग ईर्ष्या से भर जाते। उनमें से एक लकड़हारा, जिसका नाम श्याम था, बेहद लालची और धूर्त था। उसने सोचा, “अगर रामू को उसकी ईमानदारी के लिए सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ मिलीं, तो मैं भी यह तरीका अपनाकर अमीर बन सकता हूँ।”
श्याम ने एक योजना बनाई। वह जानबूझकर अपनी कुल्हाड़ी लेकर उसी नदी के पास गया और उसे नदी में फेंक दिया। फिर वह देवता को पुकारने लगा, “ओ देवता महाराज, मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है, कृपया मेरी मदद करें।”
श्याम का स्वर इतना नकली और नाटकीय था कि कोई भी उसकी धूर्तता को भांप सकता था। देवता ने फिर भी श्याम की पुकार सुनी और उसके सामने प्रकट हुए। उन्होंने सोने की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आकर पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
श्याम ने झूठ बोलते हुए तुरंत कहा, “हाँ महाराज, यही मेरी कुल्हाड़ी है।”
देवता उसकी धूर्तता को समझ गए और नाराज हो गए। उन्होंने कहा, “तुम झूठ बोलते हो और अपनी लालच के कारण सच्चाई से दूर हो। तुम्हें तुम्हारी कुल्हाड़ी भी नहीं मिलेगी।” यह कहकर देवता ने सोने की कुल्हाड़ी और श्याम की असली कुल्हाड़ी दोनों को नदी में फेंक दिया और गायब हो गए।
श्याम अपनी लालच और झूठ के कारण न केवल सोने की कुल्हाड़ी से वंचित रह गया। बल्कि अपनी असली कुल्हाड़ी भी खो बैठा। वह खाली हाथ और निराश होकर गाँव वापस लौट आया। उसकी लालच ने उसे सिखा दिया कि झूठ और धूर्तता से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता, बल्कि ईमानदारी और सच्चाई ही सच्चा धन है।
सीख: सच्चाई और ईमानदारी से हमेशा जीत होती है, जबकि लालच और झूठ अंत में विनाश का कारण बनते हैं। इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि जीवन में ईमानदारी सबसे बड़ा गुण है, और हमें हमेशा सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए।